NDA vs INDIA: कांग्रेस की छाया से निकलने के लिए यूपीए बना भारत, कई बदलावों के बाद भी भाजपा ही भारी!
यूपीए का शासनकाल देश में घोटालों और भ्रष्टाचार का पर्याय माना जाता है। प्रधानमंत्री मोदी जिस अंदाज में यूपीए पर हमला करते हैं, उसे देखते हुए विपक्ष के लिए फिर से यूपीए के झंडे तले एकजुट होना टूटी नाव में सवार होने जैसा था।
बीते नौ वर्ष में विपक्षी एकता के नाम पर कई तरह के प्रयोग देख चुका है। यूपी में सपा-बसपा और कांग्रेस, महाराष्ट्र में शिवसेना-एनसीपी और कांग्रेस, बंगाल में तृणमूल, वाम दल और कांग्रस के संयोजनों से लेकर 2019 के चुनावों में महागठबंधन इसी प्रयोग का हिस्सा रहे हैं। हालांकि, इनमें कोई भी प्रयोग इतना कामयाब नहीं हो पाया, जिससे भाजपा चिंतित हो। माना जा रहा है कि यूपीए का नाम बदलकर इंडिया रखने के पीछे यह बड़ी वजह है।
आईएनडीआईए को विपक्षी दल इंडिया के तौर पर प्रचारित करेंगे, जिसके अपने चुनावी लाभ हैं। मसलन, इस नाम के इस्तेमाल के जरिये विपक्षी दल भाजपा और एनडीए के घटक दलों को एंटी-इंडिया कह पाएंगे, जबकि अक्सर यह इन दलों की नीतियों की आलोचना करते हुए भाजपा के नेता इन्हें एंटी-इंडिया कहते आए हैं। इस तरह यह नाम असल में विपक्षी दलों को नई पहचान के साथ ही विरासत से जुड़ी चुनौतियों से बचने का रास्ता देता है।
मनोवैज्ञानिक बढ़त
यूपीए ने 2004 से 2014 तक शासन किया, वहीं 2024 में एनडीए को भी सत्ता में 10 वर्ष हो जाएंगे। ऐसे में लोगों के लिए दोनों के बीच तुलना करना आसान हो जाएगा। इसके अलावा भाजपा इस तुलना के खेल में यूपीए को आसानी से मात दे पाएगी, क्योंकि भाजपा के पास तुलनात्मक रूप से दिखाने के लिए काफी मसाला है। लिहाजा, चुनावों के दौरान तुलना के मनोवैज्ञानिक खेल से बचने के लिए भी विपक्ष ने एक नया नाम चुना है, ताकि भाजपा को कहने के लिए कुछ भी न मिले।
कांग्रेस को एकता का चेहरा बनाना मंजूर नहीं